VARAH MANDIR BAGHERA, KEKRI

  विश्व प्रसिद्ध वराह मंदिर, बघेरा, केकड़ी

 300 एकड़ में फैली वराह सागर झील से निकली थी अद्भुत विशालकाय मूर्ति विश्व प्रसिद्ध वराह मंदिर का कायाकल्प; यहां विराजमान है विष्णुजी के तृतीय अवतार शूर वराह की सबसे सुंदर प्रतिमा 

केकड़ी जिले के बघेरा गांव के विश्व प्रसिद्ध वराह मंदिर दर्शनों के लिए बड़ी संख्या में देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं। यहीं पास में 300 एकड़ में फैली वराह सागर झील है, कहा जाता है कि भगवान वराह की अदभुत विशालकाय करीब छह फिट की मूर्ति इसी झील से निकली है। जिस स्थान से मूर्ति निकली, उसे वराह भट्टी के नाम से जाना जाता है, जहां पानी भरने पर आज भी बुलबुले निकलते साफ दिखाई देते हैं। केकड़ी के जिला बनते ही वराह मंदिर में पुष्कर के ब्रह्मा मंदिर की तरह एंट्री प्लाजा बनाने का रास्ता खुल गया है। इसी तर्ज पर यहां हाल ही में स्वीकृत हुए एक करोड़ की लागत से दक्षिण सिंहद्वार, पूर्वी प्रवेश द्वार, गार्डन, ओपनएयर जिम, पुष्प वाटिका, सरोवर में सीढ़िया और गार्ड रूम शिव मंदिर छतरी, श्री हनुमान मंदिर, वराह आदि का निर्माण कार्य जारी हैं। पूर्व में भी यहां राज्य सरकार ने 1.50 करोड़ रुपए के निर्माण कार्य करवाए थे।

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हमारा देश और प्रदेश आध्यात्मिकता, पौराणिकता और ऐतिहासिकता को समेटे हुए है हजारों वर्षो से यही परंपरा चली आ रही है युगों-युगों से धर्म ओर आध्यात्मिकता तथा धार्मिक ओर आस्था के केंद्र मंदिर हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा हैजब धर्म और आध्यात्मिक और ऐतिहासिक महत्व के प्राचीन मंदिरों के महत्व के प्राचीन मंदिरों की बात होती है तो भूमि राजस्थान के केकड़ी  जिले में  बघेरा के नाम से प्रसिद्ध एक कस्बा जो किसी परिचय का मोहताज नहीं है। प्राचीन कला संस्कृति और सभ्यता को अपने में समेटे हुए यह छोटा सा कस्बा पौराणिक, आध्यत्मिक ऐतिहासिक प्राचीन और पुरातात्विक दृष्टि से एक अलग ही महत्व और स्थान रखता है।

बघेरा का परिचय

बघेरा के नाम से जाने जाने वाला यह कस्बा कभी व्याघ्रपुर नाम से जाना जाता था जिसका वर्णन आज से करीबन 5000 वर्ष पूर्व भी मिलता है।स्कंदपुराण में इसी बघेरा वर्णन व्यघ्रपादपुर नाम से वर्णीत ओर उल्लेखित हुआ है इससे इस कस्बे की प्राचीनता, ऐतिहासिकता का अंदाज और अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है इस कस्बे में ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व के मंदिर और इमारते और कलाकृतियां आज भी अपना ध्यान सहज आकर्षित करती है ओर अपना इतिहास बयां कर रहे है ऐतिहासिक और पौराणिक की इस नगरी को आम बोलचाल की भाषामें " बाराजी का गांव" के नाम से पुकारा जाता है इसके पीछे ऐतिहासिक और पौराणिक प्रगपुण भी रहे हैं बघेरा अनेक आध्यात्मिक स्थल मंदिर प्राचीन मंदिर और ऐतिहासिक धरोहर तथा यहां की पुरातात्विक सामग्री अपना इतिहास बयान कर रहे हैं परंतु कस्बे की पहचान का मुख्य केंद्रयहां का ऐतिहासिक, पौराणिक और कलाकृति का प्रतिरूप शुर वराह की मूर्ति और वराह मंदिर है।

कण-कण में इसके आध्यात्म छुपा है हर एक कण में पूरा इतिहास छुपा है

छुपा है हर जुवां पर इसका गुणगानहर सांस में छुपा इसका स्वाभिमान है

शुर वराह मंदिर और उसका ऐतिहासिक परिदृश्य

बघेरा कस्बे के उत्तर दिशा की तरफ लगभग 300 एकड़ क्षेत्र में फैली हुई पवित्र और पौराणिक झील है जिसे वराह सागर झील" के नाम से जाना जाता है इस झील के किनारे विश्व प्रसिद्ध शुर वराह का भव्य ओर ऐतिहासिक मंदिर स्थित है इस प्राचीन और भव्य मंदिर का इतिहास काफी पुराना रहा है इसका जीर्णोद्धार आठवीं शताब्दी से पूर्व के मंदिरों के अवशेषों पर संवत 1600 के आसपास मेवाड़ के महाराणा अमर सिंह के समय में बेगू के राव सवाई मेघ सिंह जिसे 'काली मेघ के नाम से भी जाना जाता है उन्होंने इस मंदिर का नए सिरे से करवाया था यह एक ऐतिहासिक तथ्य भी है तथा इस मंदिर में भगवान विष्णु के तीसरे अवतार महावराह कि दसवीं शताब्दी से पूर्व की निर्मित प्रतिमा को स्थापित किया था। एक जनश्रुति भी है की बघेरा के इस भव्य शुर वराह मंदिर में जो मूर्ति स्थापित है वह वराह सागर झील में ही एक टीले की खुदाई से प्राप्त हुई थी जिस स्थान पर यह मूर्ति निकली है आज भी उसे वराह भट्टी के नाम से जाना जाता है जहां पर पानी भर जाने पर आज भी बुलबुले निकलते है


मूर्ति की ऐतिहासिक कहानी

बघेरा के वराह सागर में मूर्ति निकलने के पीछे भी एक ऐतिहासिक कहानी है। यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि मेवाड़ के महाराणा अमर सिंह के समय में बेगू के राव मेघ सिंह बादशाह जागीर के यहाँ आगरा में थे उनकी जागीर में मालपुरा जो आज टोंक जिले में है मालपुरा से बेगू का मार्गबघेरा होकर ही जाता था यह बघेरा नगर इसी प्रकार 6 मार्गों को जोड़ता था ऐसा माना जाता है और बेगू के राव मेघ सिंह की यात्रा के दौरानझील कें पूर्वी छोर पर स्थित एक यूप था जिस पर लिखा था" एक तीर पर धन" इसी युप के इशारे के आधार पर बेगू राव साहब ने उस टीले की खुदाई की जहां पर उक्त प्रतिमा निकली थी जिस स्थान पर यह प्रतिमा निकली उसे फराह भक्ति के नाम से पुकारते हैं जहां भी आज पूजा पाठका आयोजन किया जाता है कस्बे का यह मंदिर जानेमाने इतिहासकारों लेखनी में भी अपना स्थान बना चुका है इतिहास विषय पर लिखी गई-अनेक पुस्तकों, और बघेरा का इतिहास विषय पर लिखी गई अनेक पुस्तकों बृजमोहन जावलिया जैसे अनेक इतिहासकारों ने अपनी पुतको में इस वैभवशाली प्राचीन मंदिर का उल्लेख किया है।

•क्यों विशेष है शूर वराह की प्रतिमा

निसंदेह इसआध्यात्मिक राष्ट्र में मूर्तियों और मंदिरों के बारे में यही ही कहा जा सकता है कि यहां मंदिर और मूर्तियों की भव्यता और सुंदरतातथा कलाकृति की कोई सीमा नहीं है फिर भी शुर वराह मंदिर बघेरा में स्थित यह प्रतिमा अपने आप में अद्वितीय हैं ।

यह प्रतिमा एक विशाल प्रतिमा होने के साथ-साथ कलाकृति का एक अनुपम नमूना है इसका आकार अनुमानित रूप से 4-26 फिट है जो कि भगवान विष्णु का अवतार है वराह रूप में एक पशु की इस संरचना को मूर्तिकार ने जिस रूप में बनाया है वह कल्पना से परे है भगवान विष्णु का यह रूप आद्वित्य हैं काले पाषाण से बनी यह प्रतिमा जिस पर हजारों की संख्या में छोटी-छोटी प्रतिमाओ, कलाकृतियां उत्कीर्ण है।

उन्हें देखकर सहज जी लोग दांतों तले अंगुली दबाने को मजबूर हो जाते हैं इस प्रतिमा की बनावट का आकार और इस पर की गई बारीक कलाकृति को शब्दों में पिरो कर वर्णन करना संभव नहीं है । इस रूप में भी विष्णु के समस्त आयुध, शंख, चक्र, गदा पद्म, अपने चारों पैरों में धारण किए हुए हैं शेष शैया पर क्षीर सागर में शयन करना विष्णु को बहुत प्रिय है इसे भी विग्रह शेषनाग को सैया के रूप में दिखाया गया है, चारों पैरों के बीच में कुंडली मारकर शेषनाग अपने फनो को भगवान की स्तुति में मुख के नीचे किए हुए हैं शेषनाग के इन फर्नी के अंदर दोनोंनाग कन्या ईगला - पिगला इणा पीणा भी भगवान की स्तुति करती हुई दिखाई गई शेषनाग मेंरुदण्ड में स्तिथ सुशुम्र का प्रतीक और फन इन्द्रियों ओर इणा, पीणा दाई ओर बाई दोनों नाड़ियों तथा बराही नाडी के स्थान को दर्शाती है मस्तिष्क पर रासलीला चक्र का होना पीठ पर सात समुंदर और सात लोक जिनमें चरा- चर विश्व में जीव मात्र की सभी क्रियाओं का विस्तार सहित चित्रण किया जाना समुद्र मंथन के समयदेवताओं और असुरों ने शेषनाग को नेज के रूप में काम में लिया और 14 रत्न नवनीत के रूप में प्राप्त किए थे उन्हें भी उक्त में समाहित कियागया है इसी प्रकार मल युद्ध, नृत्य, स्नान गायन यहां तक कि अन्य सभी ग्रहों को भी इस में दर्शाए जाना इस प्रतिमा को एक अलग ही महत्व प्रदानकरते हैं साथ ही वीणा बजाते हुए नारद भी भगवान की इस प्रतिमा में उत्कीर्ण किया हुआ है । इन सभी विशेषताओं से शुर वराह की प्रतिमामनमोहक और आकर्षित है जो हर किसी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लेती है साथ ही बताया जाता है कि शास्त्रों में जिस प्रकार कावर्णन वराह का पृथ्वी को धारण किये जाने का वर्णन किया गया है उसी वर्णन के तहत इस प्रतिमा को बनाया गया था साथ ही यह भी एककिवदंती है और बताया जाता है कि विश्व में इस प्रकार की यही एकमात्र अनुपम कलाकृति है।पंडित गौरीशंकर हीराचंद ओझा के अनुसार “चमकते हुए श्याम पाषण की शुकर रुप वराह की यह विशालकाय मूर्ति उनके अनुसार देखी हुई वराह की सब मूर्तियों में सर्वाधिक सुंदर प्रतिमा है।"सरंक्षित धरोहर विकास की है आज भी दरकार

केकड़ी जिले के विधानसभा क्षेत्र केकड़ी के पंचायत समिति क्षेत्र ग्राम बघेरा में क्षेत्रिय विधायक एवं गुजरात कांग्रेस प्रभारी डॉ रघु शर्मा की अनुशंसा पर मुख्यमंत्री बजट घोषणा 2022-23 के अनुसार पर्यटन एवं पौराणिक धरोहर के रूप में प्राचीन श्री वराह मंदिर के विकास केलिये 90.18 लाख रुपए स्वीकृत करने से ग्राम बघेरा के पर्यटन विकास को गति मिलेगी। पौराणिक, आध्यात्मिक ऐतिहासिक एवं प्राचीन और पुरातात्विक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण ग्राम बघेरा जो कभी व्याघ्रपुर नाम से जाना जाता था। जिसका वर्णन आज से करीबन 5000 वर्ष पूर्व भी मिलता है,स्कंदपुराण में इसी बघेरा ग्राम का वर्णन व्यघ्रपादपुर नाम से वर्णीत ओरउल्लेखित हुआ है। इससे इस कस्बे की प्राचीनता, ऐतिहासिकता का अंदाज और अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। धरोहर संरक्षण अधिनियम 1961 के तहत बरसों पहले यहाँ नीला बोर्ड लगा कर इस मंदिर को संरक्षितघोषित कर रखा है। लेकिन यह नीला बोर्ड केवल औपचारिकता मात्र था। इसकी सुध लेते हुये पिछले कार्यकाल में कांग्रेस गहलोत सरकार में क्षेत्रीय विधायक डॉ रघु शर्मा की अनुशंसा पर यहां वराह मंदिर जीर्णोद्धार हेतु 50 लाख रुपए की स्वीकृति प्रदान करवाकर मन्दिर के विकास कार्यों की शुरुआत की थी, लेकिन उसके बाद भाजपा कीसरकार आ गई लोगो को आश जगी की यह सरकार तो हिंदुत्ववादी है, तो यहां वराह मंदिर का बहुत विकास होगा मगर भाजपा सरकार ने यहां विकास के नाम पर एक रुपये की भी स्वीकृत जारी नहीं की। इसके बाद क्षेत्र के लोगो को गहरी निराशा हाथ लगी। अब वर्तमान में पुनः कांग्रेस गहलोत सरकार है और क्षेत्रीय विधायक भी डॉ रघु शर्मा ही है। क्षेत्रीय विधायक डॉ शर्मा ने राजस्थान सरकार से ग्राम बघेरा के श्री वराह मंदिर जीर्णोद्धार में शेष रहे विकास कार्य श्री वराह प्राकट्य स्थल पर कुण्ड एवं छतरी, एक प्रवेश सिंहद्वार, एक पूर्वी दिशा में मुख्य प्रवेश सिंहद्वार, वराह हर की पेड़ी" घाट, मंदिर नीचे से शिखर तक रंगीन इलेक्ट्रॉनिक लाईट्स (प्रेम मंदिर जैसे), परिक्रमा में छाया हेतु व्यवस्था, वराह वाटिका, दर्शनार्थियों के मनोरंजन हेतु चकरी, झूले, खुली जिम सरोवर के मुख्य टीले पर गार्डन इत्यादि सहित अनेक विकास कार्यों को पूर्ण करवाने के उद्देश्य से वर्तमान में पुनः पर्यटन विकास हेतु 2 करोड़ 51 लाख रुपये का प्रोजेक्ट बनाकर भिजवाया। जिसके तहत पर्यटन विकास करवाये जाने की स्वीकृति मिली है। कांग्रेस युवा नेता एवं केकड़ी पंचायत समिति सदस्य ने उक्त जानकारी देते हुवे बताया की उक्त विकास कार्यों हेतु 90.18 लाख रुपये की 25% राशि राजस्थान पर्यटन विकास निगम लिमिटेड द्वारा स्वीकृत हुई है। उन्होंने बताया कि बघेरा क्षेत्र में पर्यटन की असीम संभावनाएं मौजूद है। क्षेत्र में सर्व धर्मों के छोटे-बड़े मन्दिर स्थापित है यहां लाखो दर्शनार्थियों का आना-जाना लगा रहता है। उक्त स्थान पर अजमेर-पुष्कर से सीधा सम्पर्क होने से यात्रियों का तांता लगा रहता है। इस मार्ग से होते हुई सवाई माधोपुर - टोडारायसिंह बघेरा- सरवाड़, अजमेर- पुष्कर एक पर्यटन सर्किल के रूप में सीधा संपर्क रहता है। जिससे पर्यटको की आवाजाही बढ़ेगी और राज्य सरकार के राजस्व में भी भारी बढ़ोतरी होगी। इस कस्बे में ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व के मंदिर और इमारते और कलाकृतियां आजभी अपना ध्यान सहज आकर्षित करती है ओर अपना इतिहास खुद बयां कर रही है । ऐतिहासिक और पौराणिक कीइस पावन नगरी को आम बोलचाल की भाषा में "बाराजी का गांव" के नाम से पुकारा जाता है । इसके पीछे.ऐतिहासिक और पौराणिक प्रमाण भी रहे हैं बघेरा अनेक आध्यात्मिक स्थल मंदिर प्राचीन मंदिर और ऐतिहासिक धरोहर तथा यहां की पुरातात्विक सामग्री अपना इतिहास बयान कर रहे हैं परंतु कस्बे की पहचान का मुख्य केंद्र यहांका ऐतिहासिक, पौराणिक और कलाकृति का प्रतिरूप शुर वराह की भव्य प्रतिमा और विशाल वराह मंदिर है।

बघेरा इतिहास के शोधकर्ता रमेश झंवर, डॉ ज्ञान चन्द जांगिड़ ने ऐतिहासिक एवं पौराणिक महत्व के बारे में बतायाकी बघेरा कस्बे से गुजर रही डाविका (डाई) नदी है जिसके उत्तर दिशा की तरफ लगभग 300 एकड़ क्षेत्र में फैलाहुआ पवित्र विशाल पानी की झील है जिसे 'वराह सागर झील" के नाम से जाना जाता है। इस झील के किनारे विश्वप्रसिद्ध भगवान श्री वराह का। विशाल एवं भव्य पौराणिक कलाकृतियों से निर्मित विशाल मंदिर स्थित है। इस प्राचीन और भव्य मंदिर का इतिहास काफी पुराना रहा है। इसका जीर्णोद्धार आठवीं शताब्दी से पूर्व के मंदिरों के अवशेषोंपर संवत 1600 के आसपास मेवाड़ के महाराणा अमर सिंह के समय में बेंगू के राव सवाई मेघसिंह जिसे काली मेघ'के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने इस मंदिर का नए सिरे से निर्माण करवाया था। यह एक ऐतिहासिक तथ्य भी हैतथा इस मंदिर में भगवान विष्णु के तीसरे अवतार महावराह कि दसवीं शताब्दी से पूर्व की निर्मित प्रतिमा को स्थापितकिया था। एक जनश्रुति भी है की बघेरा के इस भव्य श्री वराह मंदिर में जो मूर्ति स्थापित है । वह वराह सागर झील मेंही एक टीले की खुदाई से प्राप्त हुई थी। जिस स्थान पर यह मूर्ति निकली है उस स्थान पर आज भी उसे "वराह भट्टी"के नाम से जाना जाता है। जहां वराह भट्टी पर पानी भर जाने पर आज भी बुल-बुले निकलते है उनके दर्शन करनेयोग्य है। बघेरा के वराह सागर झील से मूर्ति निकलने के पीछे भी एक ऐतिहासिक तथ्य है कि मेवाड़ के महाराणाअमरसिंह के समय में बेंगू के राव मेघसिंह, बादशाह जहांगीर के यहां आगरा में थे। उनकी जागीर में मालपुरा जो आज टोंक जिले में है। मालपुरा (टोंक) से बेंगू (चित्तौड़गढ़) का मार्ग बघेरा होकर ही जाता था। यह बघेरा नगर इसीप्रकार 6 मार्गों को जोड़ता था। ऐसा माना जाता है और बेंगू के राव मेघसिंह की यात्रा के दौरान वराह सागर झील केपूर्वी छोर पर स्थित एक यूप था जिस पर लिखा था "एक तीर पर धन" इसी ग्रुप के इशारे के आधार पर बेंगू रावसाहब ने उस टीले की खुदाई की जहां पर उक्त प्रतिमा निकली थी, जिस स्थान पर यह प्रतिमा निकली उसे वराहभट्टी" के नाम से पुकारते हैं जहां आज भी पूजा पाठ का आयोजन किया जाता है। कस्बे का यह मंदिर जाने मानेइतिहासकारों की लेखनी में भी अपना स्थान बना चुका है। बघेरा का इतिहास विषय पर लिखी गई अनेक पुस्तकों मेंएवं बृजमोहन जावलिया लेखकों जैसे अनेक इतिहासकारों ने अपनी पुस्तकों में इस वैभवशाली प्राचीन मंदिर का उल्लेख किया है।

क्यों विशेष है श्री वराह की प्रतिमा*

निःसंदेह इस आध्यात्मिक राष्ट्र में मूर्तियों और मंदिरों के बारे में यही कहा जा सकता है कि यहां मंदिर और मूर्तियोंकी भव्यता और सुंदरता तथा कलाकृति की कोई सीमा नहीं है, फिर भी श्री वराह मंदिर, बघेरा में स्थित यह प्रतिमा अपने आप में अद्वितीय हैं।यह प्रतिमा शूर रूपी एक विशाल प्रतिमा होने के साथ-साथ कलाकृति का एक अनुपम नमूना है । इसका आकारअनुमानित रूप से 4"2"6 फिट है जो कि भगवान विष्णु का अवतार है वराह रूप में एक पशु की इस संरचना कोमूर्तिकार ने जिस रूप में बनाया है वह कल्पना से परे है। भगवान विष्णु का यह रूप काले पाषाण पत्थर से बनी यहअद्वितीय प्रतिमा जिस पर 525 की संख्या में छोटी-छोटी देवी-देवताओं की प्रतिमा कलाकृतियां उत्कीर्ण है। उन्हें देखकर सहज ही लोग दांतों तले अंगुली दबाने को मजबूर हो जाते हैं। इस प्रतिमा की बनावट का आकार और इस पर की गई बारीक कलाकृति को शब्दों में पिरो कर वर्णन करना संभव नहीं है। इस रूप में भी श्री विष्णु भगवान के समस्त आयुध, शंख, चक्र, गदा, पद्म, अपने चारों पैरों में धारण किए हुए हैं शेष-शय्या पर क्षीर सागर में शयन करना विष्णु को बहुत प्रिय है। इसे भी विग्रह शेषनाग को शैय्या के रूप में दिखाया गया है, चारों पैरों के बीच में कुंडली मारकर शेषनाग अपने फनो को भगवान की स्तुति में मुख के नीचे किए हुए हैं। शेषनाग के इन फर्नी के अंदर दोनों नाग कन्या इंगला-पिंगला भी भगवान की स्तुति करती हुई दिखाई गई हैं। शेषनाग मेंरुदण्ड में स्तिथ सुशुम्र का प्रतीक और फन इन्द्रियों ओर इंगला-पिंगला दाई ओर बाई दोनों नाड़ियो तथा बराही नाडी के स्थान को दर्शाती है। मस्तिष्क पर रासलीला चक्र का होना, पीठ पर सात समंदर होना और सात लोक जिनमें चरा-चर विश्व में जीव मात्रकी सभी क्रियाओं का विस्तार सहित चित्रण किया जाना, समुद्र मंथन के समय देवताओं और असुरों ने शेषनाग को नेज के रूप में काम में लिया और 14 रत्न नवनीत के रूप में प्राप्त किए थे। उन्हें भी उक्त प्रतिमा में समाहित किया हुआ है। इसी प्रकार मल युद्ध, नृत्य, स्नान, गायन यहां तक कि अन्य सभी ग्रहों को भी इसमें दर्शाए जाना इस प्रतिमा को एक अलग ही महत्व प्रदान करते हैं साथ ही वीणा बजाते हुए नारद जी भी भगवान की इस प्रतिमा में उत्कीर्ण किये है। इन सभी विशेषताओं से शुर वराह भगवान की प्रतिमा मनमोहक और आकर्षित है बताया जाता है कि जो पुष्कर ब्रम्हा जी के दर्शन करने के बाद शुर वराह प्रतिमा के दर्शन करने पर ब्रम्हाजी के दर्शनों का लाभ प्राप्त होता है। उक्त दर्शन जो हर किसी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लेती है साथ ही बताया जाता है कि शास्त्रों में जिस प्रकार का वर्णन वराह का पृथ्वी को धारण किये जाने का वर्णन किया गया है। उसी वर्णन के तहत इस प्रतिमा को बनाया गया था । यहा किवदंती है कि सम्पूर्ण विश्व में इस प्रकार की एकमात्र अनुपम कलाकृति के रूप कि एक मात्र शुर वराह की प्रतिमा इसी मंदिर में स्थापित है। यह मंदिर अजमेर जिले के विधानसभा केकड़ी क्षेत्र के ग्राम बघेरा में स्थित है।


ब्रहशूर वराह, भगवान विष्णु के तृतीय अवतारमहंत नंदकिशोर पाठक ने कहा कि इस मूर्ति में श्री वराह भगवान का अवतार एक जंगली शूर के रूपमें दिखाया गया है। करीब पांच हजार साल पुरानी इस मूर्ति को सर्वधर्म के लोग पूजते हैं। पहले यह एकपत्थर नुमा शिला पर स्थापित थी, करीब 500 साल पहले चित्तौड़गढ़ जिले के बेंगू कस्बे के राव सवाईमेघसिंह द्वारा इस मंदिर और शिखर का निर्माण करवाया गया था। इतिहास में इस वैभवशाली मंदिर का

उल्लेख है। शूर वराह, भगवान विष्णुजी के तृतीय अवतार हैं।

एक तीर पर धन... लिखा देखा तो कराई खुदाईवराह सागर में मूर्ति निकलने के पीछे एक ऐतिहासिक कहानी है। मेवाड़ के महाराणा अमर सिंह के समयबेगू के राव सवाई मेघसिंह बादशाह जागीर के यहां आगरा में थे। उनकी जागीर में टोंक मालपुरा शामिलथा। मालपुरा से बेगू का रास्ता बघेरा होकर जाता था। इस तरह के छह मार्गों को जोड़ने वाले इस मार्ग से सवाई मेघसिंह लौट रहे थे। यहां झील के पूर्वीछोर पर एक शिला पर लिखा था- एक तीर पर धन। इस स्थान की खुदाई करवाई गई, तो वराह भगवान की विशालकाय प्रतिमा निकली।

पूरे विश्व में नहीं है इस तरह की वराह मूर्ति, उकेरी हैं कई छोटी प्रतिमाएं और कलाकृतियां काले पत्थर से बनी इस मूर्ति पर कई छोटी प्रतिमाएं और तरह-तरह की कलाकृतियां बनी हैं। मूर्ति में भगवान विष्णु केआयुध, शंख, चक्र, गदा, पद्म आदि हैं, जिन्हें विष्णुजी ने धारण कर रखा है।

नेज के रूप में काम में लेकर 14 रत्न नवनीत के रूप में प्राप्तकिए थे, उन्हें भी मूर्ति में समाहित किया गया है।

सात लोक और सात समुंद्रों को भी दर्शाया गया है। मल युद्ध, नृत्य, स्नान और गायन के साथ वीणा बजाते हुए नारद भी भगवान की इस मूर्ति में नजर आते हैं। चमकते हुए श्याम पाषण की शुररुपी वराह की यह विशालकाय मूर्ति विश्व में मौजूद वराह भगवान की सभी मूर्तियों में सबसे सुंदर है।

"मूर्ति में उन्हें शेषनाग की शैया पर क्षीरसागर में शयन करते दिखाया गया है। चारों पैरों के बीच कुंडली मारकर

किए हुए हैं।शेषनाग अपने फनों को भगवान की स्तुति में मुख के नीचे शेषनाग के फन के अंदर दोनों नागकन्या ईगला-पिगला औरइणा-पीणा भी भगवान की स्तुति करती हुई दिखाई गई हैं।

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