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 बीसलदेव मन्दिर टोंक


बीसलदेव मन्दिर (Bisaldeo temple) भारत के राजस्थान राज्य के टोंक ज़िले के बीसलपुर ग्राम में स्थित एक हिन्दू मन्दिर है। यह भगवान शिव के गोकर्णेश्वर रूप को समर्पित है। यह मन्दिर बनास नदी पर बने बीसलपुर बाँध के जलाशय के किनारे स्थित है। यह भारत के राष्ट्रीय महत्व के स्थापत्य की सूची में सम्मिलित है और इसका निर्माण 12वीं शताब्दी में चौहान वंश के विग्रहराज चौहान (विग्रहराज चतुर्थ) ने करवाया था, जो बीसल देव के नाम से भी जाने जाते हैं।

1200 ईसवीं पूर्व 52 खम्भों पर बने बीसलदेव मंदिर को संरक्षण का इंतजार

प्रदेश के बड़े बांधों में शामिल बीसलपुर के गेट संख्या एक के करीब बना प्राचीन बीसलदेव मंदिर रामायण काल से जुड़ा है। किवदंती है कि यहां रावण ने भगवान शिव को रिझाने के लिए तपस्या की थी। शिव पूराण में भी इसका उल्लेख है। बाद में वहां बीसलदेव का मंदिर बना दिया गया, लेकिन इस मंदिर पर ना तो प्रशासन का ध्यान है और ना ही पुरातत्व विभाग कार्य कर रहा है। ऐसे में मंदिर की कलाकृतियां धीरे-धीरे धूमिल होती जा रही है।




1200 ईसवीं पूर्व 52 खम्भों पर बने बीसलदेव मंदिर को संरक्षण का इंतजार
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राजमहल. प्रदेश के बड़े बांधों में शामिल बीसलपुर के गेट संख्या एक के करीब बना प्राचीन बीसलदेव मंदिर रामायण काल से जुड़ा है। किवदंती है कि यहां रावण ने भगवान शिव को रिझाने के लिए तपस्या की थी। शिव पूराण में भी इसका उल्लेख है। बाद में वहां बीसलदेव का मंदिर बना दिया गया, लेकिन इस मंदिर पर ना तो प्रशासन का ध्यान है और ना ही पुरातत्व विभाग कार्य कर रहा है। ऐसे में मंदिर की कलाकृतियां धीरे-धीरे धूमिल होती जा रही है।
यह मंदिर सालों तक पुरातत्व विभाग के अधीन होने के कारण अन्य विभाग नजर अंदाज कर रहे हैं। पुरातत्व विभाग की ओर से भी मंदिर परिसर में सार सम्भाल नहीं होने के कारण मंदिर दुर्दशा का शिकार होता जा रहा है। पौराणिक कथाओं व लोगों के अनुसार सदियों पूर्व बनास व डाई नदियों के संगम पर दोनों तरफ अरावली पर्वत मालाओं की शृंखलाओं की पहाडिय़ों की गुफाओं पर कभी रावण की ओर से तपस्या किया जाना बताया जाता है।
दोनों नदियों के संगम पर एक तरफ गुफा मेंं गोकर्णेश्वर शिव मंदिर है तो दूसरी ओर डाई नदी के किनारे पर्यटकों को बरबस अपनी ओर आकर्षित करने वाला बीसलदेव नामक शिव मंदिर बना है। बीसलदेव शिव मंदिर के शिलालेख व गोकर्णेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी जीवन शंकर शर्मा के अनुसार बीसलदेव मंदिर का निर्माण विक्रम संवत 1200 ईसवीं में बीसलपुर के तत्कालिन राजा बीसलदेव ने करवाया था, जो आज बीसलपुर बांध के जलभराव किनारे स्थित है।
मंदिर के खंम्भों पर वर्षों पूर्व की बनावट व पत्थरों पर की गई आकर्षक कारीगरी के चलते मंदिर को पुरातत्व विभाग ने अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया था, जो आज भी पुरातत्व विभाग के पास है। बीसलपुर बांध परियोजना के अभियंताओं के अनुसार बीसलदेव मंदिर बांध के निर्माण से पहले ही पुरातत्व विभाग के अधीन था, जिससे बांध निर्माण के दौरान व बांध बनने के बाद भी परियोजना के साथ ही अन्य विभागों ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया ना ही बीसलदेव मंदिर पर कोई निर्माण या फिर पर्यटकों की सुविधाओं के लिए कोई विकास कार्य नहीं कराए गए।

बीसलदेव मंदिर राजस्थान के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है, जो भगवान शिव को समर्पित है और मंदिर में भगवान शिव की मूर्ति है और इस मंदिर का एक गहरा धार्मिक और सामाजिक महत्व है। महाशिव रात्रि के अवसर पर हजारों श्रद्धालुओं इस मंदिर में आते है | इस मंदिर का नाम बीसलदेव रखा गया है, जिसका अर्थ है देवता महान है, सर्वश्रेष्ठ है | यह मंदिर बनस नदी के बिसलपुर बांध पर स्थित है तो मन जा सकता है यहाँ का वातावरण बहुत शांत और निर्मल होगा | भारत के पुरातत्व सर्वेक्षण' द्वारा मंदिर को 'राष्ट्रीय महत्व के स्मारक' के रूप में भी माना गया है यह 12 वीं शताब्दी में चहामान के शासक विग्रहराजा VI द्वारा प्रमाणित किया गया था, जिसे बिसल देव के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर की वजह से बिस्लपुर शहर का महत्व बढ़ गया है और इस मंदिर को गोकर्णेश्वर के रूप में भी जाना जाता है, जो विग्रहराजा या विसाला द्वारा निर्मित किया गया था, जो गोकर्ण का भक्त थे |

बिस्लदेउ मंदिर का इतिहास

शहर का नाम बिस्लपुर या विग्ररापुरा था और इसे 12 वीं शताब्दी में चहामान शासक विग्रहराजा द्वारा स्थापित किया गया था। शहर अभी भी वनापुरा नामक एक पुराने शहर की तरह दिखाई देता हैं, जो तोडाराय सिंह के तर्शक्स (नागों) द्वारा शासित की गयी थी। मंदिर के अस्तित्वो की पुष्टि कई छोटे शिलालेखों द्वारा की गयी है जो उस समय बनाई गयी थी | और तभी से यहाँ कई बड़ी संख्या में श्रद्धालु आया करते है । जिसका समय 1154-65 माना गया है यह शिलालेखे चाहमाना के महान पृथ्वीराज III के बारे में बताती है। मंदिर का निर्माण प्राचीन हिंदू शैली की स्थापत्य कला से किया गया था और इसका निर्माण एक पंचरथ के पवित्र स्थान पर किया गया था, जिसका अर्थ है कि भूमि पर पांच रथ | यहाँ एक चकोर मंडप है जिसमे एक अखाडा और पोर्टिको है जिसे शिखर कहा जाता है। यहाँ पवित्र देवस्थान पर शिव लिंग हैं जो भगवान शिव को समर्पित है यह मंदिर एक अर्धवृताकार गुंबद में बनाया गया है, जो आठ ऊंचे स्तंभों पर समर्थित किया गया है जिसमें घंटियाँ लटकी हुई है और फूलो के डिज़ाइन बने हुए है  सजावट के साथ पुष्प डिजाइन शामिल हैं।


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