khwaja fakhrudeen chisti ki dargah, Sarwar, Kekri

 ख्वाजा फखरुद्दीन चिश्ती की दरगाह

रुहानियत, इंसानियत, मोहब्बत व कौमी एकता में विश्वास रखने वालों का मरकज बाद यहां आवश्यकता अनुसार निर्माण कार्य होता रहा। ख्वाजा फखरुद्दीन चिश्ती के दोनों छोटे भाइयों में ख्वाजा सैयद जियाउद्दीन अबू सईद का 50 वर्ष की उम्र में निधन हुआ। उनकी मजार शरीफ अजमेर दरगाह में झालरा में लगे छाया घाट के चबूतरे पर है। इनका हर साल जिलाहिज की 13 तारीख को उर्स भरता है। सबसे छोटे भाई ख्वाजा असामुद्दीन दुनिया की नजरों से गायब होकर अब्दालों में शामिल हो गए। वहीं बहिन बीबी हाफिज जमाल की शादी काजी हमीबुद्दीन नागौरी के साहबजादे शेख रजीउद्दीन के साथ हुई थी। उनकी मुबारक मजार अपने पिता के मजार के पाईती है। रज्जब की 18 तारीख को इनका उर्स भी भरता है। 9 तारीख तक सालाना उर्स भरता है। सर्वप्रथम मौलाना सैयद माबूदमेचानी अजमेर मुस्तलम ने उर्स भरवाया था तब से लेकर आज तक यह उर्स भररहा है। यह अजमेर उर्स के बाद देश का सबसे बड़ा उर्स बनता जा रहा है।

अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के सालाना उर्स के मौके पर सरवाड़ स्थित उनके बड़े साहबजादे ख्वाजा फखरुद्दीन चिश्ती की दरगाह में जायरीन की खासी रौनक है। अजमेर आने वाले जायरीन में से ज्यादातर जायरीन सरवाड़ दरगाह पहुंचकर जियारत कर रहे हैं। ऐसे में यहा का नजारा मिनी उर्स जैसे नजर आता है।

रोशनी से सरोबार सरवाड़ दरगाह।
रोशनी से सरोबार सरवाड़ दरगाह।
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उर्स के मौके पर सांपला गेट, अस्थाई विश्राम स्थली गणेश तालाब, रावण चौक से लेकर दरगाह तक विभिन्न प्रकार की वस्तुओं की दुकानों से रौनक बनी हुई है। जायरीन ने यहां पहुंचने के साथ ही पवित्र मजार मत्था टेक दुआएं की। दरगाह का बुलंद दरवाजा, मीनार, गुम्बद शरीफ, आस्तान शरीफ सहित पूरी दरगाह को रोशनी से सजाया गया है। यहां दरगाह जियारत करने के बाद जायरीन बिजयनगर मार्ग स्थित मामू साहब की दरगाह में भी हाजिरी दे रहे हैं।

    सरवाड़ दरगाह शरीफ के मुत्तवल्ली हाजी मोहम्मद यूसुफ खान ने बताया कि यहां प्रेम, सद्भाव, एकात्मकता व सर्वत्र सौहार्द पूर्ण वातावरण की खुशबू बिखरी रहती है। लोगों का एक साथ नमाज पढ़ना, मजार शरीफ पर मत्था टेकना, चादर चढ़ाना, अकीदत के फूल अर्पित करना आदि परंपराओं काएक ऐसा वातावरण उपस्थित करती है कि श्रद्धालु यहां आकर ख्वाजा का दीवाना हो जाता है। दुनिया की सभी चीजें मिटने वाली और फना होने वाली हैं, हर वक्त खुदा की पनाह मांगते रहना और किसी चीज पर भरोसा न रखना,तकलीफ और मुसीबत के वक्त सब व हिम्मत का दामन ना छोड़ना पिता की मृत्यु से पूर्व दी गई इस नसीहत को जीवन में आत्मसात करने वाले ख्वाजा फखर की दरगाह में गरीबों की मन्नतें पूरी होती हैं तो अमीरों की मुरादें भी। ख्वाजा फखरुद्दीन चिश्ती के एक पुत्र ख्वाजा असीमुद्दीन जिगर सोखते की मजार सांभर में है। जहां माहे रजब की 13 और 14 को उर्स भरता है। इस अवसर पर अजमेर के खादिम बड़ी धूमधाम से चादर चढ़ाते हैं।

 यहां तालाब के किनारे स्थित फखरुद्दीन चिश्ती की दरगाह शरीफ पर माहे शबान की 1 से अजमेर में जिस तरह ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह अंतरराष्ट्रीय स्तरर प्रसिद्ध है उसी तरह उनके बड़े साहबजादे ख्वाजा फखरुद्दीन चिश्ती की नरवाड़ स्थित दरगाह शरीफ भी रुहानियत, इंसानियत, मोहब्बत और कौमी कता का केंद्र बिंदु बन चुकी है। यही कारण है कि यहां पर साल भर जायरीन का तांता लगा रहता है। रजब माह की 1 से 6 तारीख तक अजमेर में भरने ले उर्स और इसके एक माह बाद यहां पर भरने वाले उर्स में जायरीन का"लाब जियारत के लिए आता है। यहां न जाति-पाति का भेद है न राजा-रंक अंतर। ख्वाजा फखर की दरगाह में आकर सभी शरीर के भेदभाव भूलकर तरी सत्ता से जुड़े नजर आते हैं।ऐतिहासिक जानकारी के अनुसार ख्वाजा फखरुद्दीन चिश्ती का जन्म 91 हिजरी (1193 ईस्वी) में हुआ। यह ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की पहली

अजमेर के बाद देश का दूसरा बड़ा उर्स का मेला माहे रजब की 13 और 14 तारीख पर उर्स का मेला पत्नी अस्मत बीवी की सबसे बड़ी संतान थे। इनके दो भाई ख्वाजा सैयद जियाउद्दीन अबू सईद व ख्वाजा असामुद्दीन तथा एक बहन बीबी हाफिज जमाल थी। ख्वाजा फखरुद्दीन मांडल कस्बे में खेती करते थे। यह बाद में सरवाड़ आ गए। ख्वाजा फखरुद्दीन बचपन से ही धार्मिक संस्कारों से युक्त थे। दीन दुखियों के प्रति उनके मन में दया व करुणा का भाव रहता था। किसी को भी दुखी देख इनका हृदय पसीज उठता था। ख्वाजा फखरुद्दीन चिश्ती ने

भी सारी उम्र पिता की तरह खुदा की याद में व दीन इस्लाम की राह पर प्रचार में गुजारी। उनका 70 वर्ष की उम्र में 661 हिजरी (1263 ईस्वी) में सरवाड़ में इंतकाल हुआ जहां पर उनकी मजार है। पूर्व में यह कच्ची बनी हुई थी, देखते ही देखते आज यह भव्य, सुंदर और विशाल रूप ले चुकी है। सफेद संगमरमर की आभा वाली मजार शरीफ के बाहर ही आस्ताने का खूबसूरत अक्स जब नीचे तालाब में उभरता है तो देखने वाले अपलक खड़े रह जाते हैं। दरगाह का निर्माण स्वर्गीय हाजी सैयद अब्दुल हमीद ने करवाया।

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